मुमताज़ को 19 साल में 17 बच्चे: डॉ सरोज सिंह
-डॉ सुनील विक्रम सिंह के उपन्यास ताज़महल के आँसू का विमोचन
-टीडी कॉलेज के बलरामपुर सभागार में हुआ आयोजन
जौनपुर। मुग़ल काल का स्वर्णयुग कहा जाने वाला शाहजहां का शासनकाल भले ही समृद्ध रहा हो लेकिन वह शासक मुमताज़ की रूह से नहीं, शरीर से प्रेम करता था। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है मुमताज़ ने 19 साल में 17 बच्चे जने। इसी के चलते उसने दम तोड़ दिया। यह बात टीडी कॉलेज की पूर्व प्राचार्य, हिन्दी की विभागाध्यक्ष डॉ सरोज सिंह ने डॉ सुनील विक्रम सिंह के उपन्यास ताज़महल के आँसू के हवाले से कही।
शनिवार की दोपहर टीडी कॉलेज के बलरामपुर सभागार में डॉ सुनील के उपन्यास ताज़महल के आँसू का विमोचन हुआ। इसमें कॉलेज के वर्मन प्राचार्य डॉ समर बहादुर सिंह, पूर्व प्राचार्य डॉ अरुण कुमार सिंह, बीएचयू में मनोविज्ञान के प्रो . आर एन सिंह, विधि वेत्ता, साहित्यकार, शायर प्रो. पीसी विश्वकर्मा और लेखक एवं इलाहाबाद विवि में हिन्दी के शिक्षक डॉ सुनील विक्रम सिंह, उनकी पत्नी व शिक्षक डॉ मधुलिका सिंह शामिल रहीं। डॉ सरोज सिंह इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहीं थीं। उन्होंने कहाकि इस उपन्यास का कथानक मुगल शासक शाहजहां की पत्नी मुमताज़ के इर्दगिर्द घूमता है। कथानक में आधुनिकता का समावेश कर लेखक ने रोचकता को बढ़ा दिया है। वैसे भी उपन्यास लिखना सबसे कठिन होता है लेकिन इसे सुनील विक्रम ने कर दिखाया। उन्होंने टीडी कॉलेज में 18 साल अध्यापन के दौरान पांच कृतियाँ साहित्य जगत को दीं। इस उपन्यास का शीर्षक भी दो साल पूर्व सोच लिया था। इलाहाबाद की पुस्तक प्रदर्शनी में यह कृति अच्छी बिक्री की श्रेणी में आ गई है।
डॉ सरोज ने उपन्यास ताज़महल के आंसू के 47 वें अध्याय का जिक्र करते हुए कहाकि शाहजहां ने ताज़महल का तामीर कराया मुमताज़ की याद में। उसकी कब्र पर पानी की बून्द टपकती रहती है जो मुमताज़ के आँसू को दर्शाती है। लेखक ने जुटाकर जो तथ्य दिए हैं कि 19 साल में 17 बच्चे पैदा करने वाली मुमताज़ की मौत यह सिद्ध करती है कि शाहजहां को उसके मन से नहीं बल्कि तन से प्रेम था। इसे लेखक ने बड़े सलीके से उकेरा है। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम दोपहर एक से अपरान्ह तीन बजे तक चला। सभी शिक्षाविदों ने उपन्यास का गहराई से किए गए अध्ययन के अनुभव को समारोह में साझा किया।
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