माफ़िया का बदलता स्वरूप 26
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- बड़े भू-माफ़िया की दाल नोटों की आंच से गल रही, छोटे नगर पालिका, प्रशासन और मास्टर प्लान की चक्की में पिस रहे।
-प्रशासन भी 1600 लोगों को तीन महीने से नोटिस ही देने में उलझा, छह दर्जन के ख़िलाफ़ एफआईआर भी कीमती पान की पीक बनकर रह गया।
----------------------------------------(कैलाश सिंह )की फ़ेसबुक वाल से
वाराणसी। जौनपुर का प्रशासन अब आमजन की पुरानी धारणा को प्रमाणित करने लगा है। वह यह कि भू-माफ़िया को नोटिस देना दशकों से चला आ रहा रसूम है। इसके बहाने बगैर टैक्स वाली रकम की वसूली आसानी से हो जाती है। मातहत जिले के आला अफसर की नब्ज देखकर उसी अनुसार चौसर बिछाते हैं। तीन महीने से दी जाने वाली नोटिस अभी आधा रास्ता भी नहीं तय कर सकी है।
दूसरा दिलचस्प पहलू देखिए, जिन बड़े भू-माफिया यानी झील के खूंखार जलजीव जो नदी किनारे दूर तक की ज़मीन निगल चुके हैं। उन्हें दी गई नोटिस में साफ लिखा गया है कि आप जिस ज़मीन पर काबिज हैं दरअसल वह ग्रीनलैंड, पार्क और खुला क्षेत्र है अथवा वनविहार से निकला नाला जो झील से होते गोमती में गिरा है उसकी पुलिया पर भी एक दिवंगत माननीय रैन बसेरे को आवास व कई जगलर व्यावसायिक भवन खड़े किए हैं। सभी को लिखित कहा गया है कि निर्णय होने तक कोई निर्माण न करें लेकिन झील के जलजीवों ने नोटों की आंच पर अपनी दाल गलानी जारी रखी। इसके बाद ऐसे लोगों में शुमार 74 के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हुई जिसे भू-माफिया कीमती पान की पीक बनाकर गटर तक पहुंचा दिए।
इसमें सत्ताधारी दल के कई माननीय भी लगे हैं जो चंदे की रकम में बंदरबांट कर रहे हैं। जिले में कमीशनखोरी का सबसे बड़ा प्रमाण नमामीगंगे योजना की सीवरलाइन व कलेक्ट्रेट से ओलन्दगंज बाज़ार को जाने वाली हाथी सरीखी मोटी सड़क जो सीसी रोड का धुप्पल दे रही।
इसके अलावा एक इंटर कॉलेज कैम्पस की ज़मीन पर खुली दारू की दुकान का का लेखाजोखा अगली कड़ी में शीघ्र। क्रमशः
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