सिमटती विरासत ,भूलते लोग
केराकत जौनपुर।
आषाढ़ माह की गर्मी में एक ओर जहां प्रकृति जलती हुई दिखाई पड़ती है वही सावन में बारिश के समय प्रकृति का अनावरण हरा भरा होता है! सावन का महीना आते ही एक ओर जहां पूरा गांव कजरी की गीतों से झूम उठता था वही सावन की रिमझिम बारिशों में पेड़ों की डाली पर पड़े झूलों पर बैठ युवा बच्चे व नव विवाहिते झूला झूलती हुई दिखाई पड़ती थी ! वहीं पर आज के परिवेश की बात की जाए तो ऐसा लगता है कि हमारी संस्कृति को आज का युवा भूलता जा रहा है आज झूलों पर केवल नन्हे मुन्ने बच्चे ही अपने घर के बाहर आम के पेड़ों पर झूलते हुए दिखाई पड़ते हैं वहीं अगर बात करें कजरी गीतों की तो कान तरसते हैं सुनने के लिए! आज की युवा पीढ़ी मोबाइल व्हाट्सएप फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के मकड़जाल में ऐसा फसा की फंसता ही जा रहा है अब हमारी युवा पीढ़ी को इस दलदल से निकालना मुश्किल ही लग रहा है।
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गॉवो को लगी शहरो की नजर
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आज कल शहरों की चकाचौंध के बीच लोगों के दिलों से हमारी संस्कृति ही दूर जाती हुई दिखाई पड़ती है सही मायने में अगर कहा जाए तो शहरों की चकाचौंध अब गांव को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है क्योंकि आज की अपेक्षा उस समय में सावन के महीने में जहां हर गांव में कजरी जैसे गीतों का तराना गूंजता था लेकिन अब ऐसे गाने कहां सुनने को मिलते हैं। महानगरों का प्रवेश आज गांव में पूरी तरह से प्रवेश कर चुका है।
हमारे संस्कृति में ही छुपे है भविष्य के राज-
असल मायने में हमारे संस्कृति की नींव रखी गयी थी उत्तम भविष्य के लिए।संस्कृति में बच्चों के लिए जो नीव डॉली गयी थी उसमे बच्चे बड़ो का आदर सत्कार करते हुए कई शिखें उनको सिखाती थी।आज संस्कृति की क्षिड़ता से युवा बड़ों का आदर छोटों को प्यार देना भूल रहा है जिसका असर हमारे समाज मे काफी बुरा पड़ रहा है जिसमे बलात्कार,माता पिता को घर से निकाल देना,हत्या,बच्चियों को गलत निगाह से देखना,चोरी,व्यसन,अपराध,किसी का सम्मान न करना आदी ऐसे कई प्रकरण है जो समय के हिसाब से बढ़ते जा रहें है।ये सब संस्कृति के क्षिड़ता के कारण ही हो रहा है।
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