मेडिकल स्कैम 5: कैलाश सिंह 
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हैरतअंगेज: जौनपुर का एक डॉक्टर करता है मुर्दों का इलाज
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- इसिलिए मरीजों की केस हिस्ट्री फाइल जब्त किए रहता है, मरीज के परिजनों से मिलता है इसका दवा ठेकेदार, व्यवस्था का विरोध करने वालों के मरीज़ को तड़के कर देता है डिस्चार्ज.
- ये डिग्री लिखा है  सर्ज़न की, लेकिन इलाज फ़िज़िशयन वाला भी करता है, कैमरे से देखकर भर्ती लेता है हर तरह का मरीज़. हादसे में फटे सिर वाले मरीज को इसके आईसीयू के लठैतों ने इस बात पर पीटा की वह चिल्ला रहा था. 
- हर मरीज भर्ती करता है 8 बेड के आईसीयू जनरल वार्ड में, हर दिन का शुल्क लेता है सात हजार. इमरजेंसी मरीज को भी देखने आता है रात में 2 से 4 बजे. इसके जिले भर में फैले दलाल भूत, प्रेत वाले मरीजों को भी भेजते हैं. यानी हर मर्ज़ की दवा है इसके पास. 
- एक दिन में पांच से दस हजार की दवा खपाता है एक मरीज पर, एक मरीज छह माह से कमर की नस का हो रहा है इसके यहाँ इलाज, मरीज खाता है हफ़्ते भर में नौ सौ की दवा पर नहीं ठीक हो रही उसकी कमर.
- स्टैंड में मेडिकल स्टोर और लखनऊ- वाराणसी हाईवे पर नई गंज में वाहन स्टैंड, फोटो में दिख रहा मुख्य सड़क पर रस्सी से बनाया गया घेरा, हालांकि ऐसा कई ने कर रखा है.
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वाराणसी. मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की सरकार  शिक्षा, स्वास्थ्य व अपराध मुक्त प्रदेश बनाने के लिए पूरी ईमानदारी से लगी है. इसका असर भी दिख रहा है लेकिन स्वास्थ्य के मामले में अधिकारी ही सरकार को पुड़िया देकर दवा के दलालों की तरफ से आँखें मूंदे हैं. खुले मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली 10 रुपये की दवा 20 परसेंट छूट के साथ, वह नई गंज के निजी अस्पतालों के मेडिकल स्टोरों पर 100, 150 रुपये में बेची जा रही है. यहाँ के अस्पतालों जिन्हें स्लाटर हाउस कहने में गुरेज नहीं, इनका लीडर यहीं सबसे पहले दुकान खोलने वाला वाला एक पार्टी का नेता ( भाजपा नहीं) है. उसका खास जोड़ीदार है एक जिसका स्लाटर हाउस उस जमींन पर है जिसके लिए पूर्व डीएम के कार्यकाल में प्रशासन ने नोटिस दिया था यानी भवन ही अवैध है. गोरखपुर- प्रयागराज हाईवे पर उसने मरीजों को फांसने का जाल फैलाया है. ये दोनों उन मरीजों को भगा देते हैं जिनके परिजन जागरूक होते हैं.  जबकि ऐसे परिजनों का भी इलाज पिटाई से करने को नई गंज वाले कसाई ने लठैत पाल रखे हैं. इसके यहाँ मिर्गी से लेकर भूत प्रेत ग्रसित मरीजों तक का इलाज होता है. तभी अस्पताल को ट्रामा सेंटर बनाया है,  सबको इतनी दवा देता है की कोई न कोई तो फायदा करेगी ही. यदि रिएक्शन की तो वह मरीज ओ टी के लिए आरक्षित हो जाएगा.
कल तक जिस पत्रकार केदार नाथ सिंह का इसके यहाँ इलाज हो रहा था उसे इसने डिस्चार्ज कर दिया हायर सेंटर को. उन्हें वाराणसी के सिगरा में न्यूरो के विशेषज्ञ डा अविनाश चन्द्र सिंह ने देखा, कुल 18 सौ की दवा दिया और घर भेज दिया. कहा 10 दिन में एक बार और दिखा लीजिएगा. ये ठीक होने के करीब हैं. जबकि डिस्चार्ज करने वाले ने केस हिस्ट्री ही जब्त किए रखा. परिजनों से वह और उसके लठैतों मे से एक उसके मैनेजर ने बोला की आजकल के पत्रकार केवल चाय पर पूँछ हिलाते मिल जाएंगे. आपके परिचित पत्रकारों से मना कर दो, वह देखने न आएं. यदि आएं तो अस्पताल में कमियाँ न खोजें. हाईवे पर इतनी कम जमींन में अस्पताल बनाना कोई हंसी का खेल है. सारे मानक कागज में पूरे करने को स्वास्थ्य व जिला प्रशासन को बहुत खिलाना पड़ता है तब जाकर एन ओ सी मिलती है. पैथालजी का खेल अगले एपिशोड में. क्रमशः