कफन खसोट डॉक्टर 2
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संविदा पर डॉक्टरों की नियुक्ति और निजी प्रैक्टिस ने सरकारी अस्पताल को बना दिए तिजारत का अड्डा, यहाँ वार्ड बॉय भी बन गए हैं निजी अस्पताल के दलाल, 
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कैलाश सिंह
वाराणसी. उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की कहानी कोई भी हो वह तत्कालीन से दशकों आगे तक की घटनाओं को जोड़ने मे सक्षम हैं, इसीलिए उनकी कहानी के पात्र गांव खेत खलिहान और चूल्हे से जुड़े होते थे क्योंकि ये पात्र व लोकेशन सदियों तक जिंदा रहेंगे.
उनकी कहानी कफ़न के तीन पात्र बाप, बेटा और गर्भवती बहू हैं. गरीब बाप और बेटा जाड़े के दिन किसी के खेत से चोरी किए आलू को पेट की आग बुझाने को कौड़ी मे पकाने और खाने की लालच मे नहीं उठ रहे थे और उधर घर मे प्रसव पीड़ा से तड़प रही बहू ने दम तोड़ दिया. ग्रामीणों ने चन्दा करके कफन लाने को पैसे दिए तो बाप बेटे दारू के ठेके पर मछली और दारू पीकर लुढ़क गए. आज़ की परिस्थिति यह हो चली है कि वे बाप बेटे ग्रामीण हो गए और डॉक्टर व स्टॉफ ने बाप बेटे का स्थान ले लिए.
सरकार ने प्रसूताओं के लिए दवा समेत अच्छे भोजन को पैसे भी देने का इंतज़ाम किया है लेकिन ये डॉक्टर प्रसूताओं के अस्पताल मे पहुँचते ही कफन तक खींचने मे लग जाते हैं. वे मरीज के परिजनों को इतना डरा देते हैं की वह नर्सिंग होम मे जाने को लाचार हो जाते हैं. कफन  खीचने वाली जैसी कहानी जौनपुर जिले के डोभी क्षेत्र के अवार्ड प्राप्त सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बीरीबारी और जिला महिला अस्पताल की है. सुहाना नामक प्रसूता को सीएचसी की डॉक्टर ने वाराणसी के पांडेपुर मे अपने निजी अस्पताल मे ले जाने की कोशिश की. नाकाम होने पर बड़े स्लाटर हाउस जौनपुर भेज दिया. घटना 3 फरवरी 2023 की है. वहाँ शाम लगभग 7 बजे सुहानी को 797 नम्बर पर रजिस्टर मे इंट्री मिली फिर जांच रिपोर्ट दर्ज करके तीज़ारत शुरू हुई. जब मरीज की एक मात्र परिजन जुही नहीं मानी तो दूसरे अन्य निजी अस्पताल का विकल्प दिया. मौके पर तमाम अस्पताल के दलाल खड़े थे. साथ मे आशा बहुएं भी थी जो दबाव बनाने मे जुटीं थी.
एम्बुलेंस न मिलने पर बिना रिपोर्ट लिए जूही अपने मरीज को लेकर निजी साधन से घर पहुंच गई दूसरे दिन उसी महिला को आजमगढ़ के लाल गंज मे बेटी पैदा हुई. सुहानी तो अपने परिजन की समझ से बच गई लेकिन जूही ने जो बताया वह रोंगटे खड़े करने वाली कहानी है. यहाँ प्रसूताओं को आपरेशन टेबल पर लिटाने और चीरा लगाने के बाद स्थिति गम्भीर बताकर निजी स्लाटर हाऊसों मे ज़ेब का कत्ल करने को भेजा जाता है. उससे उन्हें मोटा कमीशन मिलता है. किसी अस्पताल मे सामान्य डिलिवरी नहीं होने दी जाती है. गावों. कस्बों. बाजारों मे झोलाछाप यमराज़ भी इन स्लाटर हाऊस मे केस फंसाकर भेजते हैं. ऐसे लोगों की जांच को सीएम ओ द्वारा नियुक्त एसीएमओ आदि भी जांच के नाम पर बकरे खोजते हैं हलाल करने को. इस तरह से आमजन दलालों की चक्की मे पिस रहा है. क्रमशः...........