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गोल्ड माफिया के यहां आईटी छापे की बरसी तक उन्होंने अपने हुए घाटे कर लिए पूरे. कैरेट का का खेल बना कैसीनो. वाहनों की एजेंसियां तो हैं दिखावा!Don News Express

माफिया का बदलता स्वरूप 42
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- गोल्ड माफिया के यहां आईटी छापे की बरसी तक उन्होंने अपने  हुए घाटे कर लिए पूरे. कैरेट का का खेल बना कैसीनो. वाहनों की एजेंसियां तो हैं दिखावा!     
- मुख्तार के गुर्गों को हफ्ता देने के बाद भी गोल्ड सिल्वर माफिया अपनी सुरक्षा का रखता है पुख्ता इंतज़ाम, अपर मध्यम वर्ग इसकी गिरफ्त में, अफसरों को भी चूना लगाने से नहीं चूकता! 
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कैलाश सिंह
वाराणसी/ जौनपुर- पिछले साल 31 जनवरी को  आयकर विभाग की टीम ने जौनपुर के जिन दो कथित सराफा कारोबारियों के यहाँ हफ्ते भर तक छापे मारी की थी उनमें से एक तो गोल्ड व सिल्वर तस्करी का माफिया रहा और मुन्ना बजरंगी को हफ्ता लाखों में देता रहा. दिखावे के लिए वाहनों की एजेंसियां भी चलाता है. रानी धन देवी के नाम की एक कोठी खरीदी थी. उसमें गड़े सारे धन निकालने को भी मशीन खरीदी थी. काम पूरा होते ही कोठी बेच दी. फिर लग गया कैरेट की मशीन से खेलने में. इस epishod में इसी का लेखाजोखा. दूसरा गोल्ड के साथ ज़मींन के सौदे में ऐसा उतरा की भू माफिया बन गया. वह पैसे के बल पर अधिकारियों से जमींन का सौदागर हो गया. इसका दिखावे व कमाई का भी धन्धा मैरिज लॉन भी हो गया. यह कुछ हद तक आमजन को कम लूटता है लेकिन जिसकी जमींन पर बाज़ नज़र लगी तो झपट लेता है. खुद की सुरक्षा को यह भी निजी  गार्डों की फ़ौज रखता है. इसी के दबंग गार्डों ने एक कांस्टेबल को पुलिस लाइन के नजदीक एक सैलून में जमकर पीट दिया था तब समझौते के लिए कथित नेता बीच में आकर मांडवली कराये थे.
मुख्तार के गुर्गों की तलवार से चांदी काटने वाला गोल्ड माफिया आमजन से मिलने में डरता है. यह सद्भावना पुल के पास अपने नए गोल्ड दुकान को आवास भी बनाया है. इससे मिलने कोई पहुंचे तो तो उसकी पड़ताल सीएम कार्यालय जैसी उसके कथित कर्मचारी करते हैं. वह भीतर बैठे सीसीटीवी से देखता है फिर निर्धारित करता है की मिलेगा या नहीं. उसकी यह दुकान भी टैक्स बचाव के नजरिये से एक रिश्तेदार के हिस्सेदारी में है. हालांकि इसके एक सम्बन्धी की दुकान कचहरी के पास भी है. इसका दामाद लखनऊ में आयकर की गिरफ्त में आ चुका है. अब इसके कैरेट का खेल देखिए.
इसने हलमार्क की मशीन ले रखी है. इसी से इसके गुर्गे या कथित कर्मचारी ग्राहक की औकात देखकर 14 कैरेट सोने के ज़ेवर पसन्द कराके बिल बनने व पैकिंग होने के बीच मशीन के जरिये उसे 22 कैरेट का बना देते हैं. ज़ेवर निर्माण स्थल को फैक्ट्री का नाम देकर कुछ कर्मियों को ठीक वेतन देकर बाकी को ग्राहक की जेब काटने वाले गिरोह में शामिल रखता है. नोटबंदी के साल तमाम अफसर भी काले धन को गोल्ड कराने में लगे थे. इसने 20 परसेंट पर सौदा किया लेकिन 30 परसेंट अपनी कला से मार लिया. इसी चपेट में एक पीसीएस महिला अफसर भी आ गई थी. उसकी पसीने की कमाई थी. जब वह गरज उठी तो  चूहा बना गोल्ड माफिया बाहर आया और मैडम के जेवर में हुए कैरेट के गोलमाल की भरपाई करके मामला निबटा लिया. क्रमशः

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