आधी दुनिया से सब हारे
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- टाइगर, पैंथर, चीता सबने हाथ खड़े कर दिए, नंगई पर उतारू महिला को लाश सरीखे तीन थानों की पुलिस दूसरे की सीमा में धकेलने के उपाय बताती रही।
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कैलाश सिंह-----शब्द चित्र--
वाराणसी। तारीख 25 नवम्बर, समय रात के 12 बजे। स्थान कैंट रोडवेज स्टेशन पर खड़ी ताज डिपो की जनरथ बस। भीतर का माहौल सी ग्रेट फिल्मों का संचालन करने वाला थियेटर जैसा। एक नायिका चलचित्र के एक्ट्रेस सरीखे बोल रही, बाकी दर्शक सुन रहे। दिल्ली की राजनीति से शुरू भाषण में उसने सबको स्तब्ध किए रखा। मैं भी पहुंचा तो उसके शोर से बचने को आगे वाली सीट पर बैठा। कान में इयरफोन लगाकर गाने सुनने लगा। सीन तब बदलने लगा जब कंडक्टर ने उस महिला से पूछा कहाँ जाना है और किराया दीजिए।
महिला सीट से खड़ी होती है और कहती है कि आप पहले सबका टिकट बना लो। कंडक्टर सभी के टिकट बनाए और फिर उसके पास आया तो उसका जवाब था कि पैसे नहीं हैं और लखनऊ जाना है। पैसे मुख्यमंत्री से ले लेना या फिर हर यात्री से सहयोग ले लो। मेरा पति मुझे छोड़कर भाग गया। यदि कोई यात्री पैसे दे देगा तो वह मुझसे शादी कर सकता है। इसके बाद वह महिला बस से उतरने को भी तैयार नहीं हुई। उसकी भाषा अश्लीलता की सीमा रेखा पार करने लगी। एक परिवार समेत मुम्बई से आकर बस से जौनपुर का सफर कर रही थी। पति चालक की केबिन पकड़ लिया। युवा बेटी रोने लगी। दो किशोर बेटे हक्का बक्का थे तो उस गृहिणी ने उसे डांटा समझाया पर वह नंगई पर उतर आई। तब तक बाबतपुर बस पहुंच गई। वहां पिकेट ड्यूटी कर रहे पुलिस जवानों ने चालक परिचालक के सामने मदद के नाम पर हाथ खड़े कर दिए। कहाकि उससे बात करते ही धारा 376 में हम फंस जाएंगे। फूलपुर में कंडक्टर ने मुझसे मदद मांगी तो वह महिला मेरी सीट के बगल में आ गई। मेरे भी प्राण सूखने लगे। मैं भी उतरने के बहाने ड्राइवर की केबिन में पहुंचकर अपने मित्र पत्रकार से सहयोग की बात कही तो उसने जौनपुर के जलालपुर पुलिस से कहा। वहां के दरोगा का फोन आया। उसने कहा बस थाने पर लाइए लेकिन बस साई नदी पारकर सिरकोनी पहुंच चुकी थी लिहाजा उसने जफराबाद थाने पर सूचना दी। जब हम वहां पहुंचे तो छोटे दरोगा, मुंशी, दीवान कुछ देर में आए तो लेकिन टालने के लिए हमे लाइन बाजार थाने पर भेज दिया। यहां पहरा जगा था और भीतर मुंशी सो रहे थे। बुलाने पर जागे और समस्या बताने पर कहा जहां से महिला को लाए हैं वहीं छोड़ आइए या फिर बगल में महिला थाने जाइए। इन थानों पर महिला पुलिस रात में नहीं होती हैं।
महिला थाने के सड़क वाले गेट पर जेल की तरह ताले लटके मिले। यहां भी एक कांस्टेबल काफी देर बाद आई और बात सुनकर अपने से बड़ी पोस्ट वाली को बुलाई। उसने बताया ये थाना केवल दम्पति विवाद सुलझाता है। बस लेकर करंजाकला यानी लुम्बिनी दुद्धि मार्ग पर सुपुर्तगी दीजिए। इस तरह उस जौनपुर के थानों व पुलिस की सक्रियता देखने को मिली जिनके कोड नेम हैं पैंथर, टाइगर, चीता आदि। जबकि कप्तान एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का तमगा लिए फिरते हैं। बानगी देखिए।यह तमगा भी छुटभैये बदमाशों पर मुकदमे की गदहलदान के बाद पकड़कर मुंगराबादशाहपुर व गौरबादशपुर में हाथ पैर बांधकर पिटाई के बाद राजा साहब के पोखरे जैसे स्थान पर ले जाकर गोली मार दी जाती है और एक सिपाही को घायल दिखाकर मीडिया के सामने ऐसा प्रदर्शन किया जाता है जैसे एनकाउंटर करने वाली पुलिस चम्बल से सीधे पहुंची हो। यानी उस रात रोडवेज कर्मियों के सहयोग में कोई नहीं आया। चीता टाइगर जंगल की गुफाओं में थे बाकी रँगे सियार उपाय बताते रहे। जरा सोचिए यदि बस को बदमाशों ने हाईजैक किया होता तो क्या स्थिति रहती। खैर उस नायिका को जौनपुर के बस स्टेशन पर छोड़ा गया तब तक रात के तीन बजे चुके थे।
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