पार्क की ज़मीन पर भू-माफ़िया का डाका
पार्क की भूमि पर बना लिया मैरेज लॉन, वर्षों कमाने के बाद तब्दील करके बना दिया होटल।
कई तो जलकुम्भी में बाउंड्री बनाकर स्थिति की नज़ाक़त भांप रहे
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(सै. हसनैन कमर "दीपू")
जौनपुर। साढ़े छह दशक बाद जिले में किसी प्रशासक का मतलब आमजन को समझ आने लगा है। सरकारी ज़मीन खाली कराने को भेजी जा रही नोटिस में कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा। जबकि इनमें कई माननीय के अलावा खुद को बहुत लगाने वाले लोग भी शामिल हैं। नोटिस में किसी का पदनाम नहीं बल्कि वल्दियत भर है। इस तरह ग्रीनलैंड, पार्क आदि को आरक्षित सैकड़ों एकड़ ज़मीन पर बीते 65 साल से डाका पड़ता चला आ रहा है, जिनपर रोकने की जिम्मेदारी थी कान में तेल डालकर कीमती पान खाके सोये रहे।
वर्तमान जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने सबसे पहले बन्दोबस्ती मैप से इन ज़मीनों की नवैयत समझी फिर पैमाइश कराई। इसके बाद शासन को रिपोर्ट भेजी। राजधानी से अनुमति मिलने के बाद लोगों को सम्बंधित विभागों से नोटिस भेजनी शुरू कर दी। इस तरह शासन के ही निर्देश पर महायोजना 2021 की शुरुआत हुई।
पूर्व में महायोजना 1956 के तहत जो ज़मीन झील के लिए आरक्षित थी ताकि उसपर पिकनिक स्पॉट बनेगा लेकिन वह तत्कालीन समय मे विविध कारणों से अधर में लटक गई थी। अब जिला प्रशासन ने खोज की तो वह ग्रीनलैंड, पार्क, बाढ़ के लिए खुला क्षेत्र के रूप में केवल कागज़ में है जबकि मौके पर कई स्टार के होटल, शॉपिंग काम्प्लेक्स, रेस्टूरेंट, अस्पतालों आदि के भवन बने हैं वह भी बगैर नक्शा पास हुए। जिन्होंने कुछ ले देकर एकाध मंजिल का नक्शा पास भी करा लिया उसपर भी कई फ्लोर बनाकर उसे खुद अवैध बना दिया।
एक बानगी देखिए, वाजिदपुर के पास एक मैरेज लॉन लगभग एक दशक पूर्व बना। उसने केवल पार्किंग में हजारों ट्रैक्टर मिट्टी पाटी थी लेकिन इस बीच इतना कमाया की यह मैरेज लॉन होटल में तब्दील हो गया। अब होटल के स्टार बढ़ते जा रहे हैं। इसके मालिक को मिली नोटिस में ज़मीन की नवैयत और नोटिस के तहत प्रशासन ने जो जवाब मांगा है वह भी दर्ज है।
फर्जी कागज़ हाईकोर्ट जाने की इजाजत नहीं दे रहे
जौनपुर। सरकारी जमीन पर काबिज़ तमाम लोग शासन-प्रशासन को चैलेंज करने के लिए हाई कोर्ट जाने की तैयारी में लगे हैं। जाहिर है लोग पिछले वर्षों की तरह प्रलोभन भी दिए होंगे लेकिन डीएम और मातहत अफ़सर नहीं माने। इन्हीं में से कुछ लोगों ने बताया कि प्रशासन कुछ लेने को राजी नहीं और कोर्ट जाने की इजाजत हमारे पास उपलब्ध कागज़ नहीं दे रहे। ग्रीनलैंड, नाला, पार्क की जमीन पर भवन तोड़ने में बड़ा नुकसान होगा। लगता है समूचा व्यापार ही बर्बाद हो जाएगा। कुछ लोग उच्च न्यायालय का रुख इस आधार पर कर रहे हैं कि यदि मेरी ज़मीन नहीं थी तो नक्शा कैसे पास हो गया। यदि बिना नक्शे के कई फ्लोर बने हैं तो उसकी पेनाल्टी ले ले प्रशासन। यानी ज़मीन भले सरकारी है पर उनकी मानकर पिछले अधिकारियों ने नक्शा पास कर दिया।
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