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मोहर्रम:(दास्ताने कर्बला 5) : हज़रत इमाम हुसैन (अ.स)की मदद के लिए आ रहे लोगों को रोकने की शुरु हुई कोशिश।Don News Express

मोहर्रम:(दास्ताने कर्बला 5) : हज़रत इमाम हुसैन (अ.स)की मदद के लिए आ रहे लोगों को रोकने की शुरु हुई कोशिश
"30 हजार "से अधिक फौजी पहुंच चुके थे कर्बला।
जौनपुर से (विशेष) चार मोहर्रम तक कर्बला में हुसैन और उनके असहाब को कत्ल करने के लिए तीस हजार से अधिक फौज यजीद की तरफ से जमा हो चुकी थी। हालांकि इमाम हुसैन अभी भी जंग को टालने की कोशिश कर रहे है और यजीदियों को बार-बार समझाने का प्रयास कर रहे है लेकिन यजीदी फौज पर फौज मंगाते चले जा रहे है। फाजिल खेयाबानी ने किताब वसीलतुननिजात के हवाले से लिखा है कि पांचवीं मोहर्रम को इब्ने जेयाद ने एक और पत्र वाहक को तलब किया। जिसका नाम सबस बिन  रबई था। अल्लामा मजलिसी के अनुसार जब इब्ने जेयाद ने उसे बुलाया तो उसने बीमारी का बहाना बनाया और हाजिर नहीं हुआ लेकिन रात के वक्त वह इब्ने जेयाद के पास आया। इब्ने जेयाद ने उसे अपने पास बैठाकर कर्बला जाने के लिए कहा यह वहीं सबस बिन रबई था जिसने इमाम हुसैन को पत्र लिखकर आने के लिए कहा था। इधर कर्बला के मैदान में हुसैन अपने उन्ही सहाबियों के साथ मौजूद है जिन्हें लेकर वे पहुंचे थे। छह मोहर्रम आती है अल्लामा मजलिसी के अनुसार इब्ने जेयाद फौज पर फौज भेजता रहा। यहां तक की उसने से जंग करने के लिए कर्बला ने उमर बिन सअद के पास 30 हजार सिपाही जमा हो गये। ये वही छठी मोहर्रम थी जिस दिन इब्ने जेयाद ने इब्ने सअद को एक और पत्र लिखकर हुसैन के कत्ल करने के लिए कड़ाई से हुक्म दिया था। इधर कूफे की हालत यह थी कि जिसको भी हुसैन से जंग करने के लिए भेजा जाता वो कुछ दूर जाकर वापस हो जाता। दिनौरी के अनुसार इब्ने जेयाद बड़ी संख्या में लोगों को जंग के लिए भेजता था लेकिन लोग हुसैन से जंग नहीं करना चाहते थे। इसलिए अधिकांश लोग वापस हो जाते थे यह देख इब्ने जेयाद ने सबीद बिन अब्दुल रहमान को जासूसी के लिए तैनात किया और कहा कि जो भी कर्बला न जाए उसे पकड़कर वापस लाया जाय। इसने एक व्यक्ति को पकड़कर उसके हवाले किया जिसका सरेआम कत्ल कर दिया गया और लोग भयभीत हो गये। दूसरी तरफ कर्बला में हबीब इब्ने मजाहिर ने इमाम हुसैन से पास स्थित एक बस्ती में जाने की ख्वाहिश जाहिर की ताकि वहां के लोगों को हुसैन की मदद के लिए अमादा किया जा सके। यह बस्ती बनी असद की थी। इमाम हुसैन से इजाजत मिलने के बाद हबीब वेश बदलकर अंधेरी रात में वहां पहुंचे और लोगों को हुसैन की मदद करने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि नबी का नवासा मोमिनों के साथ यहां पड़ाव डाले हुए है और उमर बिन सअद के लश्कर ने चारों तरफ से घेर लिया है। मैं उन्हें नसीहत देने आया हूं कि इमाम हुसैन की मदद करो। ताकि तुम्हारी दुनिया और आखरत दोनों संवर जाय। मैं खुदा की कसम खाता हूं कि जो व्यक्ति भी राहे खुदा में रसूल के नवासे के साथ कत्ल होगा वो रसूल के रिफाकत में होगा। हबीब की इस बात पर सबसे पहले अब्दुल्ला बिन बशर असदी ने लब्बैक कहा। जब वह तैयार हो गया तो कई और लोग भी इमाम हुसैन का साथ देने के लिए तैयार होकर इमाम के खैमे की ओर रवाना हुए लेकिन किसी ने इसकी मुखबिरी इब्ने सअद को कर दी उसने अरजक नामक कमांडर को चार सौ फौजियो के साथ इस हुक्म के साथ भेजा की आने वालों को रास्ते में ही रोक लिया जाए। आधी रात का समय था। फुरात नदी के किनारे दोनों पक्षों का न सिर्फ टकराव हुआ बल्कि एक बड़ी जंग हो गयी। हबीब इब्ने मजाहीर ने अरजत से रास्ता छोड़ने की बात कही लेकिन वह तैयार न हुआ। बनी असद की ओर से आ रहे चंद लोग लश्कर का मुकाबला नहीं कर सके और अपने इलाके की तरफ वापस चले गये। हबीब वापस इमाम के पास आये और उनको जानकारी दी। इमाम ने जानकारी मिलने के बाद कहा लाहौल वला कुवता इल्ला बिल्लाह।

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