उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन के बाद कोविड-19 महामारी के खतरे के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू लगातार जनता के मुद्दों पर संघर्षरत हैं.पिछले वर्ष 17 जुलाई को सोनभद्र के उम्भा गांव में हुए नरसंहार की पहली बरसी पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में शिरकत करने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कमार लल्लू 16 जुलाई को सोनभद्र जा रहे थे. सुबह करीब 11 बजे प्रयागराज-वाराणसी राजमार्ग पर गोपीगंज के समीप भारी पुलिस बल ने अजय कुमार लल्लू को रोककर हिरासत में ले लिया. कुछ देर तक लालानगर के पास एक अतिथि गृह में रखने के बाद पुलिस इन्हें लेकर सीतामढ़ी के एक गेस्टहाउस में ले आई. अजय गेस्ट हाउस के बाहर ही अपने गिरफ्तार साथियों के साथ धरने पर बैठ गए और सर्वधर्म सम्भाव गीत गाने लगे. काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा और शाम के वक्त पुलिस ने अजय कुमार को छोड़ा. यूपी में लॉकडाउन के बाद महामारी के खतरे के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लगातार जनता के मुद्दे पर संघर्षरत हैं. कोरोना संक्रमण के खतरों के बीच पिछले चार महीनों के दौरान आधा दर्जन ऐसे अवसर आए हैं जब अजय कुमार लल्लू ने संघर्ष का रास्ता अख्तियार किया है.
बेहद गरीब परिवार से आने वाले अजय कुमार लल्लू का जीवन बड़ा संघर्षमय रहा है. इनका जन्म कुशीनगर के सिवरही कस्बे के वार्ड नंबर 10 के आजाद नगर मोहल्ले में हुआ था अब इसे किदवई नगर के नाम से जाना जाता है. पिता शिवनाथ प्रसाद नमक के छोटे से व्यवसाई रहे हैं. शिवनाथ आर्थिक रूप से काफी कमजोर थे. वह इतना नहीं कमा पाते थे कि अपने चार बच्चों को पढ़ा सकें. पिछड़ी जाति मधेसिया से ताल्लुक रखने वाले अजय अपने भाइयों के साथ सड़क पर बैठकर खाद, बीज और पटाखे बेचते थे. इससे कुछ पैसे मिल जाते थे और किसी तरह गुजारा होता था. चार भाईयों में तीसरे नंबर के अजय कुमार ने सिवरही के संस्कृत पाठशाला में शुरुआती शिक्षा ली. यहीं के लोकमान्य इंटर कालेज में इन्होंने कक्षा आठ से 12 तक की पढ़ाई की. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए इन्होंने वर्ष 1996 में किसान पीजी कालेज में दाखिला लिया. यहीं से छात्रों के मुद्दे पर उनके आंदोलन की शुरुआत हुई.कॉलेज में वर्ष 1997 में विद्यार्थियों से कुर्सी के नाम पर फीस के अलावा 50-50 रुपए वसूले गए. इसके बाद भी विद्यार्थि्यों को कुर्सी न देकर जमीन पर बिठाकर पढ़ाई कराई जाने लगी. अजय ने पहली बार इसी मुद्दे पर विद्यर्थि्यों को एकजुट कर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था. अजय कुर्सी के लिए धरने पर बैठ गए. कई दिन तक धरना चलने के बाद एसडीएम ने मौके पर पहुंचकर कॉलेज प्रशासन से छात्रों से लिए गए पैसे के ऐवज में कुर्सी देने का आदेश दिया. मांग पूरी होने पर अजय ने अनशन खत्म कर दिया. अगले वर्ष 1998 में कॉलेज प्रशासन ने फिर छात्रों से कुर्सी के ऐवज में फीस के इतर 50-50 रुपए लेना शुरू किया. कॉलेज प्रशासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर अजय फिर धरने पर बैठे. इसी दौरान इनपर पहला मुकदमा दर्ज हुआ. ये थाने ले जाए गए जहां इन्हें चार घंटे बिठाया गया. जानकारी मिलने के बाद अजय के पक्ष में विद्यार्थियों का हुजूम उमड़ा और बड़ी संख्या में छात्रों ने थाने का घेराव किया. थाने से छूटने के बाद अजय कॉलेज पहुंचे और यहां प्रशासनिक भवन के सामने अनशन पर बैठ गए. प्रशासन द्वारा अडि़यल रवैया अपनाए जाने के विरोध में छात्र उग्र हो गए. उन्होंने कॉलेज परिसर में आगजनी और तोड़फोड़ की. अजय पर फिर मुकदमा दर्ज हुआ. अंतत: छात्रों के समर्थन से अजय की जीत हुई और यह तय हुआ कि जिस छात्र की मर्जी होगी वह पैसा देकर अपने लिए कुर्सी का इंतजाम करेगा जिसकी मर्जी नहीं होगी वह पैसा नहीं देगा. कॉलेज प्रशासन कुर्सी के लिए पैसा देने को किसी भी छात्र को बाध्य नहीं करेगा. यहीं से कुर्सी के लिए अजय की पहली लड़ाई शुरू हुई थी. यहां वर्ष 1999 में ये कॉलेज के छात्रसंघ महामंत्री बने और इसी दौरान एक आंदोलन में पहली बार अजय ने पुलिस की लाठी खाई और जेल भी गए.अगले ही साल वर्ष 2000 में अजय छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए. छात्रों की समस्याओं को लेकर आंदोलन के कारण अजय को तीन बार कॉलेज से निष्कासित किया गया. अजय क्रिकेट के भी अच्छे खिलाड़ी थे और यह कॉलेज की तरफ से मंडल स्तर पर क्रिकेट खेल चुके हैं. पॉलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद अजय ने जनता की समस्याओं पर आंदोलन करना जारी रखा. बिजली, गन्ना किसानों के भुगतान और बाढ़ की समस्या, मुसहर जाति की समस्याओं को लेकर अजय लगातार आंदोलन के जरिए जनता की आवाज उठाते रहे. सिवहरी कस्बे में एक व्यक्ति पर पुलिसिया जुल्म के खिलाफ अजय ने सिवहरी थाने का घेराव किया था. इसमें इन्हें स्थानीय लोगों का जबरदस्त समर्थन मिला था. पुलिस ने अजय को गिरफ्तार कर देवरिया जेल में बंद कर दिया जहां यह 17 दिन तक रहे थे. इसी दौरान अजय दलितों, आदिवासियों के लिए जल, जंगल और जमीन के अधिकार को लेकर संघर्ष कर रहे एकता परिषद के संपर्क में आए.इसके बाद 'छत्तीसगढ़ बचाओ यात्रा' समेत कई आंदोंलनों में अजय ने शिरकत किया. वर्ष 2007 में अजय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में तुमकुही राज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और महज 3,200 वोट ही पा सके. इसके बाद अजय ने राजनीति से अपने को अलग कर नौकरी करने दिल्ली चले गए. गुड़गांव में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मजदूरी करने लगे. मजदूरों के साथ झुग्गी में सोते थे. एक वर्ष तक यहां काम करने के दौरान अजय ने ठेकेदारों के चंगुल में फंसे मजदूरों की व्यथा को स्वयं महसूस किया. कई-कई महीने तक वेतन रोके रखना. वेतन भी पूरा न देना. सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं होना. इसी दौरान बिल्डिंग के निर्माण में लगे एक साथी मजदूर की मौत ने अजय को झकझोर कर रख दिया और वह वापस सिवरही लौट आए.वर्ष 2009 में इन्होंने कांग्रेस ज्वाइन की और जनता के मुद्दों पर संघर्ष करना शुरू किया. वर्ष 2012 में कांग्रेस ने अजय को तुमकुहीराज से टिकट दिया. उस वक्त समाजवादी पार्टी की लहर चलने के बावजूद अजय विधानसभा चुनाव जीते और विधायक बने. विधायक बनने के बाद भी अजय ने अपना संघर्ष नहीं छोड़ा. यही वजह रही कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड लहर में कांग्रेस के बड़े से बड़े नेता खेत रहे थे तब भी अजय कुमार ने तुमकुहीराज में कांग्रेस का झंडा लहरा दिया था. अजय को कांग्रेस विधानमंडल दल का नेता बनाया गया.यूपी में लॉकडाउन के दौरान अजय कुमार इकलौते नेता थे जो जनता के मुद्दे पर संघर्ष कर रहे थे. यूपी में पूरी गृहस्थी सिर पर लादे पैदल चल रहे मजदूरों के लिए बसों के इंतजाम के लिए अजय कुमार ने जमकर आंदोलन किया. कांग्रेस पार्टी द्वारा भेजी गई बसों को यूपी सरकार द्वारा न लिए जाने के खिलाफ अजय धरने पर बैठ गए. ये गिरफ्तार होकर जेल गए. करीब एक महीने जेल में रहने के दौरान प्रियंका गांधी ने अजय कुमार के लिए पार्टीजनों को एक पत्र लिखकर उनकी हौसलाआफजाई की. प्रियंका ने अपने पत्र में लिखा, “आगरा से रिहाई के बाद पुलिस उन्हें लखनऊ जेल के लिए लेकर निकल रही थी तो मैंने उनसे फोन पर बात की. मैंने कहा ‘क्या जरूरत थी महामारी के समय गिरफ्तार होने की? अपनी सेहत का तो ख्याल रखिए.’ इससे पहले कि मैं अपनी पूरी बात कह पाती, फोन पर उनकी उत्साहभरी हंसी फूट पड़ी. ‘अरे दीदी, यह दमनकारी सरकार है. इसके सामने मैं कभी सिर नहीं झुकाउंगा. आप मेरी फिक्र मत करो.’ अगली सुबह उनके ऊपर कई फर्जी मुकदमे लाद दिए गए. आरोप, कि उन्होंने यूपी सरकार को वाहनों के नंबर गलत दिए. इसी ‘अपराध’ में आज तक कैद हैं. दमन के बाद भी वे निडर, अडिग और अजेय हैं. लल्लू उस भारत के सच्चे नागरिक हैं, जिसके लिए महात्मा गांधी ने लड़ाई लड़ी थी. वे इंसाफ के हकदार हैं. उनके साथ न्याय होना चाहिए. ”लल्लू" अब रिहा हो चुके हैं और जनता की अदालत में पैरवी में जुट चुके हैं।
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