एचयूआईडी से खेल रहे गोल्ड माफिया
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-सोने में ठगी के शिकार हुए लोगों को रसीद व टंच किए का प्रमाण लेकर जाना चाहिए उपभोक्ता फोरम.
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कैलाश सिंह
वाराणसी. सर्राफा कारोबार में ग्राहक को ठगी से बचाने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा  एच यू आई डी यानी हलमार्क यूनिक आइडेंटिफिकेशन लागू किया गया लेकिन जेवर के नाम पर तो नम्बर है पर वजन को आधार नहीं बनाया. बस इसी चूक का फायदा कारोबारी उठाते हुए एक ही एच यू आई डी नम्बर को कैरम की लाल गोटी यानी रानी गोटी से सोने में कैरेट का गेम खेल रहे हैं. इनमें जौनपुर का एक गोल्ड माफिया इसी एच यू आई डी से खेलकर ग्राहक को ठग रहा और छोटे दुकानदारों के धन्धे प्रभावित कर रहा. इसमें उसका एक रिश्तेदार भी शामिल है. उसकी दुकान तो सिविल लाइन में कलेक्ट्रेट के निकट है. 
यह वही गोल्ड माफिया है जिसके यहां पिछले साल जनवरी 31 को पड़ा आईटी का छापा हफ़्ते भर चला. इससे पूर्व इसके यहाँ सीबीआई की टीम भी पहुंची थी. क्योंकि रेलवे में अफसर रहते हुए इसके दामाद ने लगभग तीन सौ करोड़ का घोटाला किया था और उस पैसे का ट्रांजैक्शन उसने अपने श्वसुर यानी यहाँ के गोल्ड माफिया के खाते में करके हिस्सेदार बन गया था.
यह गोल्ड माफिया पहले छोटी दुकान लगाकर खाली समय में कैसीनो का संचालन किया. कैसीनो यानी जुए की नाल वसूली करना. इसी दौरान उसकी दोस्ती पुलिस से होने लगी. तब इस महकमे के बड़े अफसरों को पकड़ने के लिए इसने एक कथित पत्रकार को मिलाकर चांदी तस्करी भी शुरू कर दी थी. बाद में मुख्तार अंसारी के खास मुन्ना बजरंगी ने इससे लाखों हफ्ता वसूली शुरू कर दी थी. इस तरह आमजन को ठगने वाला यह कथित कारोबारी बदमाशों के लिए मोसम्बी बन गया. वे जब चाहते हैं तब इसे धमकी की मशीन में डालकर रस निचोड़ते हैं.
बानगी देखिए 5 अप्रैल को एक सोने की शॉप पर ग्राहक आया. उसने 18 कैरेट के 10 ग्राम के जेवर का दाम पूछा. शॉप संचालक ने जीएसटी जोड़कर लगभग 49 हजार बताया. ग्राहक ने उसी गोल्ड माफिया और उसके रिश्तेदार का नाम लेकर बताया कि वहाँ तो 44 हजार में मिल रहा है. ग्राहक के जाने के बाद मैने पूछा ऐसा कैसे सम्भव है? जवाब मिला कि वह दोनों जीजा- साले एक ही जेवर के एच यू आई डी का नम्बर दो तीन सौ पीस जेवर पर चलाते हैं. प्रशासन के पास कोई शिकायत क्यों नहीं करता इसकी भी बानगी देखिए... 
वर्ष 20 13 से 2016 के बीच भाजपा नहीं, दूसरे दल की सरकार थी. उसी सरकार का चहेता एक आला अफसर तैनात था. एक पत्रकार ने उसी गोल्ड माफिया के यहां से खरीदे झुमके को टँच कराया तो 4 कैरेट कम मिला. तत्कालीन प्रशासन से की शिकायत पर जांच करने महिला एसडीएम ने सामान्य ग्राहक बनकर झुमका खरीदकर रसीद ले ली तो उन्होंने अपना परिचय दिया तब गोल्ड माफिया शॉप में नमूदार हुआ. कहा इसे दीजिए हम दूसरा जेवर अच्छा वाला देंगे. वह नहीं मानी तो गोल्ड माफिया ने तत्कालीन डीएम के जरिए मामले का पटाक्षेप करा लिया. इससे यही सीख मिलती है की ठगी के शिकार प्रशासन के पास जाने की बजाय उपभोक्ता फोरम में पहुंचें तो न्याय मिलने के चांस बढ़ जाएंगे. क्रमशः