माफिया का बदलता स्वरूप 43
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- तस्वीर जौनपुर के चाहरसू चौराहे की है जिसे मुंबई के नरीमन का दर्जा हासिल है. यह शाही पुल रोड पर है लेकिन सद्भावना पुल जिसे जूहू चौपाटी कहा जाने लगा है वह भी नजदीक है. यहाँ की जमींन गोल्ड से कीमती है. इसपर नज़र पड़ी गोल्ड माफिया की तो उसी की हो गई. 
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कैलाश सिंह
वाराणसी. आज से ठीक 14 महीने पूर्व जिन दो गोल्ड माफिया के यहाँ आईटी के छापे में दीवार तक खोदी गई थी उनमें से वाहनों की एजेंसियां चलाने वाले बड़े जगलर के करोड़ों के बैंक खाते भी सीज हुए थे जिसे ले देकर उसने बाद में छुड़ा लिए. इसी माफिया ने हवा मे जमींन कब्जा ली है. एक चर्चित कहानी मोती लाल नेहरू की है. उन्होंने ब्रिटेन में बैरिस्टर रहते वहाँ जमींन लम्बाई. चौडाई और  उचाई के हिसाब से खरीदी और बन्गला बनवाया तो दो फुट ऊंचाई कम करके फिर क्या था प्लॉटर उसे आसमां की ऊंचाई की तरफ नहीं बेच पाया. यह तो था वकील का दिमाग लेकिन यहाँ गोल्ड माफिया ने जिस व्यापारी से 14 फुट लम्बी जमींन, दुकान खरीदी उसी की निज़ी छत पर कब्ज़ा ढाई दशक पूर्व से कर रखा है.
इसने खुद को छत का किरायेदार कोर्ट में साबित करने की कोशिश भी की लेकिन हार गया तब मुख्तार अंसारी के गुर्गों का सहारा लेकर डराया और पुलिस प्रशासन को खरीद लिया. हवा में इसका कब्ज़ा उसी तरह कायम है जैसे उसके जोड़ीदार दूसरे गोल्ड माफिया ने कोतवाली के निकट सरकारी शिक्षण संस्थान पर कर रखा है. यह दोनों पुलिस प्रशासन के बड़े अफसरों को बिना नीलमी के करोड़ों में खरीद लेते हैं. दूसरा माफिया तो सिपाह तिराहे पर अरबों की जमींन कौड़ियों में ले ली. लेकिन इसने तत्कालीन अधिकारी को इनोवा कृष्टा गिफ्ट की और बाकी रकम अपने पास स्विस बैंक के फार्मूले पर गोल्ड में गला दी. नोटबन्दी के दौर से ये दोनों गोल्ड माफिया अफसरों व कुछ कथित नेताओं की काली कमाई को सोना बनाते आ रहे हैं.
जी एस टी वाले इनके यहाँ कुछ नहीं पाते क्योकि ये सब हाल मार्क मशीन खुद रखे हैं. ग्राहक को 14 कैरेट सोना को ये 22 कैरेट बनाकर सामान्य भाव से कम में जी एस टी को जोड़कर देते हैं. वापसी में अपने यहाँ की गारन्टी भी देते हैं. दुकानों में तमाम प्रमाण पत्र टांग रखते हैं. एक बड़े ग्राहक ने इनसे खरीदे ज़ेवर के प्रमाण हथिया ली है. हवा में भी कब्जा और सोने में खोट के साथ तस्करी की फेहरिस् त लम्बी है तो आगली किस्त में. क्रमशः