शब्दचित्र----
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वाराणसी। समय 10 मार्च की रात 12.15 बजे। स्थान- वाराणसी कैंट रोडवेज पर खड़ी वाराणसी से लखनऊ जाने को तैयार जनरथ बस। बगल की सीट पर बैठे एक युवक के मोबाइल की घण्टी बजती है। वह कॉल करने वाले से बोलता है कि जौनपुर की फ़ला सीट से मामा फिर जीत गए। अबकी उनके नज़दीकी ने कहा है कि वह कैबिनेट मंत्री बनेंगे! मैं भी बनारस पहुंचकर बस में बैठ गया हूँ जौनपुर आने के लिए। इस बार चुनाव में मैं एक दर्जन लोगों को साथ लेकर मामा के लिए तन,मन, धन से लगा था। सरकार चाहे जिसकी बने इससे मतलब नहीं, बस मुझे और मेरे साथियों को काम चाहिए। वह फिर जौनपुर के व्यक्ति को फोन लगाता है और कहता है कि जश्न मनाओ और मेरे लिए भी तैयार रखो, मैं दो बजे से पहले पहुंच जाऊंगा। रात में जश्न और सुबह धंधे की बात होगी पक्की। उसके फोन पर लगातार बात चलती रही,,,
मेरा अनुमान है कि वह युवक अपने उसी मामा के माननीय होने की बात कर रहा था जिन्होंने पिछले कार्यकाल में नमामि गंगे योजना को ऐसी चपत लगाई थी कि पूरी योजना ही गटर में विलीन हो गई। शुरुआत में उन्होंने निकाय से जुड़ी कई योजनाओं में खुद के साथ रिश्तेदारों को भी प्रदेशभर में ठेके दिलाकर सैकड़ापति से करोड़पति बने और बना दिए। इनकी काली कमाई को सफेद वही व्यक्ति करता है जिसने पिछली जीत पर उनके शपथ लेने से पहले कार गिफ्ट की थी, अन्यथा कोतवाली से कचहरी तक आने के लिए इन माननीय को दूसरे की बाइक की पिछली सीट खोजनी पड़ती थी। यह अरबपति तो पहली ही इनिंग में हो गए थे लेकिन छोले समोसे वाले का उधार जो मुफलिसी के समय के थे वह अभी तक बकाया है। इनका निजी वित्तमंत्री जिले का मशहूर घी वाला है। सबसे बड़े ठेके वही लेता भी है। माननीय के हाथ भू- माफ़िया के पैसे से भी रंगे हैं। फिर माननीय हो गए हैं अबकी तो भगवान ही मालिक होंगे। यदि कैबिनेट में पहुंच गए तो सम्बंधित विभाग से समूचे प्रदेश को लूटने में गुरेज नहीं करेंगे? क्रमशः
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