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सदर सीट पर मुकाबला हुआ दिलचस्प, प्रत्याशियों ने झोंकी अपनी ताकत,तीन दशक से दोबारा कोई भी नहीं चुना गया।Don News Express

सदर सीट पर मुकाबला हुआ दिलचस्प, प्रत्याशियों ने झोंकी अपनी ताकत
तीन दशक से दोबारा कोई भी नहीं चुना गया इस सीट पर विधायक
भाजपा के गिरीशचंद्र यादव को टक्कर दे रहे हैं नदीम, सलीम व अरशद

(सै.हसनैन कमर दीपू)
जौनपुर। सदर विधानसभा सीट का चुनावी पारा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। गर्मी की तपिश के साथ साथ प्रत्याशियांे के माथे पर पसीना साफ दिखाई पड़ रहा है। यहां प्रमुख राजनीतिक दलों में जहां तीन मुस्लिम प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने का सपना देख रहे हैं तो वहीं भाजपा से राज्यमंत्री गिरीशचंद्र यादव अपनी सीट बचाने के लिए हर एक दांव खेलने को बेताब हैं। सपा ने जहां पूर्व विधायक अरशद खान को टिकट दिया है तो वहीं बसपा ने सलीम खान पर अपना दांव खेला है। कांग्रेस ने भी अपने जिलाध्यक्ष फैसल हसन तबरेज का टिकट काटकर पूर्व विधायक नदीम जावेद को चुनाव मैंदान में दो दो हाथ करने के लिए भेज दिया लेकिन प्रचार के दौरान उनकी तबियत खराब होने से समीकरण एक बार फिर बदलता हुआ नजर आ रहा है। नदीम जावेद फिलहाल गुड़गांव के वेदांता मे अपना इलाज कर रहे हैं और मंगलवार से अपना चुनाव प्रचार करने आ सकते हैं। पिछले दो दशक की अगर बात की जाये तो इस सीट पर हमेशा चौंकाने वाला परिणाम सामने आया है। 2002 में भाजपा के टिकट पर सुरेंद्र प्रताप सिंह पहली बार विधानसभा पहुंचे थे तब उन्हांेने सपा के जावेद अंसारी को शिकस्त दिया था तो वहीं बसपा तीसरे स्थान पर थी। 2007 में भाजपा ने एक बार फिर अपने विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह पर दांव लगाया लेकिन यह उल्टा पड़ा और सपा के जावेद अंसारी ने अपनी हार का बदला लेते हुए भाजपा को शिकस्त दी। बसपा व कांग्रेस भी हांफती हुई इस चुनाव में नजर आई। 2012 मंे कांग्रेस ने एक बड़ा दांव खेलते हुए युवा राष्ट्रीय नेता को तरजीह दी और नदीम जावेद यहां से प्रत्याशी बनाये गये भाजपा ने एक बार फिर सुरंंेद्र प्रताप सिंह पर दांव लगाया तो वहीं बसपा ने मौर्य समाज को जोड़ते हुए तेज बहादुर मौर्य उर्फ पप्पू को अपनी हांथी पर सवार कर मैदान में चुनावी जंग के लिए भेज दिया। सपा ने अपने विधायक पर ही भरोसा रखते हुए साइकिल पर सवार कर सभी से दो दो हाथ करने के लिए मैदाने जंग में भेज दिया। केंद्र मंे यूपीए की मनमोहन सिंह की सरकार का फायदा नदीम जावेद को मिला और स्टार प्रचारक व बॉलीवुड की चकाचौंध जिले में प्रचार के दौरान देखने को मिली और नदीम जावेद ने आखिरकार बसपा के तेज बहादुर मौर्य को हराकर तीन दशक बाद कांग्रेस को जिले में संजीवनी प्रदान करते हुए सीट पर कब्जा कर लिया। भाजपा इस चुनाव मंे चौथे स्थान पर रही जबकि सपा के विधायक जावेद अंसारी को तीसरे स्थान से ंसंतोष करना पड़ा। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा कांग्रेस गठबंधन प्रदेश में हुआ तो यह सीट सपा ने कांग्रेस के नदीम जावेद के लिए छोड़ दी और गठबंधन का प्रत्याशी उन्हें बनाया गया। भाजपा ने भी बैकवर्ड वोट बैंक का समीकरण देखते हुए अपने कार्यकर्ता गिरीशचंद्र यादव पर दंाव लगाया तो वहीं बसपा ने वर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष दिनेश टंडन को हाथी पर सवार कर मैदान मंे भेज दिया। इस चुनाव में भाजपा के गिरीशचंद्र यादव ने 2002 के बाद पुन: कमल का फूल खिलाने में कामयाब हुए और नदीम जावेद को करारी शिकस्त का सामना सपा से गठबंधन के बावजूद करना पड़ा। बसपा के दिनेश टंडन तीसरे स्थान पर रहे। ऐसे मंे 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार पुन: गिरीशचंद्र यादव को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार दिया तो कांग्रेस के नदीम जावेद भी उनसे मुकाबला करने क ो बेताब हैं। सपा ने भी अपना दांव खेलते हुए 1992 के गठबंधन प्रत्याशी के रूप में विधायक चुने गये अरशद खान पर अंतिम मुहर लगाते हुए साइकिल पर सवार कर मैदान मंे भेजा है तो वहीं बसपा ने युवा मुस्लिम चेहरा उतारते हुए सलीम खान को पहली बार मैदान मंे उतार दिया है। ऐसे में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के ये प्रत्याशी जातिगत समीकरण को देखते हुए अपनी अपनी जीत का दावा करते हुए नजर आ रहे हैं। लड़ाई चतुर्दिक होती हुई नजर आ रही है। फिलहाल मतदाता सभी प्रत्याशियों का आंकलन कर रहे हैं। एक बात तो साफ हो गई है कि बीते तीन दशक से यहां दोबारा कोई विधायक नहीं चुना गया है  ऐसे में भाजपा को ये किला बचाने के लिए जहां कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी तो वहीं सपा बसपा व कांग्रेस भी अपनी इस सीट पर दबदबा बनाने के लिए कोई बड़ा राजनीतिक दांव खेल सकते हैं।

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