बदलापुर विधानसभा सीट
सै. हसनैन कमर दीपू
जौनपुर।
जिले में विधानसभा चुनाव की गरमी धीरे धीरे अब चरम पर पहुंच चुकी है। नेता दरवाजे दरवाजे अपने लाव लश्कर के साथ कई कई टोलियों में बंट कर पहुंचने लगे हैं। और लोगों को तरह तरह के आश्वासन के जाल में बांधने की कोशिश में भी लग गये है। जनपद की सभी विधानसभाओं पर लगभग ऐसा ही हाल देखने को मिल रहा है लेकिन इन्हीं विधानसभा सीटों में एक सीट बदलापुर विधानसभा की भी है जहां नये परिसीमन के बाद यह तीसरा चुनाव होने जा रहा है। इस विधानसभा सीट पर तकरीबन साढ़े तीन लाख मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेगें। इसके पहले यह विधानसभा पूरी तरह खुटहन विधानसभा के रूप में जानी जाती थी क्योंकि इसका भाग खुटहन विधानसभा के क्षेत्र में आता था। नये परिसीमन के बाद खुटहन
जंग बहादुर यादव विधायक बनें। जबकि 1981, 1993 में बसपा के उमाकांत यादव ने कांग्रेस से यह सीट छीनने में कामयाबी हासिल की थी। इसके बाद 2002 में शैलेंद्र यादव ललई बसपा के ही टिकट पर यहां से विधायक चुने गये लेकिन 2007 में उन्होंने पाला बदल लिया और सपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में आये और बाजी मारने में कामयाब हो गये तबसे यह सौट भले ही शाहगंज और बदलापुर में समाहित हो गई लेकिन शाहगंज के रूप में उन्हीं के कब्जे में बरकरार है। इसके बाद बदलापुर विधानसभा के रूप में 2012 में एक नई विधानसभा का अस्तित्व में सामने आया और पहली बार इस विधानसभा के समाजवादी पार्टी के ओम प्रकाश दूबे बाबा के सिर ताज बंध गया जबकि इसके पूर्व बाबा दूबे रारी विधानसभा में लगातार तीन बार सपा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव हार चुके थे लेकिन 2017 के चुनाव में बसपा ने बसपा ने यादव कार्ड खेला तो रोचक बना दिया। बताते चलें कि जिले की यह ऐसी विधानसभा सीट है जिसपर अहम मानी जाती है और 2017 में इन्हीं ब्राहम्ण मतदाताओं के समाहित कर एक नई विधानसभा के रूप में बदौलत भाजपा ने यह सीट रमेश मिश्रा के 2012 में एक नई विधानसभा बदलापुर के रूप में सपा से यह सीट छीनने में कामयाबी हासिल की। इस बार भी इस क्षेत्र पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। सपा और भाजपा के प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं जबकि बसपा अभी मौन है। बसपा के प्रत्याशी आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पायेगा कि इस पार्टी पर अबकी बार किन प्रत्याशियों के दरमयान संघर्ष होगा।
पिछली बार भी सपा और भाजपा ने ब्राह्मण दोनों दलों ने खेला कार्ड खेलकर लड़ाई को था ब्राह्मण कार्ड बसपा प्रत्याशी के विधानसभा का अस्तित्व मैदान में आने का ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका खत्म करके कुछ अन्य इंतजार
विधानसभाओं के क्षेत्रों को
रूप में अस्तित्व में आई।
आजादी के बाद से जब तक यह खुटहन विधानसभा के रूप में रही इस विधानसभा में 1957, 1962, 1969, 1974 1977 लक्ष्मीशंकर यादव पांच बार कांग्रेस के विधायक के रूप में चुने गये जबकि 1980 और 1985 में कांग्रेस के ही
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