माफ़िया का बदलता स्वरूप 30
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- 1600 लोग अवैध भूमि, भवन पर काबिज, छह महीने में कितनों को मिली नोटिस, कितना राजस्व हुआ वसूल, इसका जवाब मीडिया को नहीं मिला।
- रसूखदार भू-माफ़िया और प्रशासन के बीच का दलाल बना एक भू-माफिया, कथित पत्रकार।
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(कैलाश सिंह)की फेस बुक वाल से...
वाराणसी। बीते छह माह पूर्व मई-जून में वर्तमान डीएम के निर्देश पर मास्टर प्लान, नगर पालिका और सिटी मजिस्ट्रेट की रफ्तार 100 के कांटे से ऊपर चल रही थी। ताबड़तोड़ बगैर मैप या फर्जी नक्शे के नाम पर एक या दो कमरे बनाने वाले गरीबों पर बिजली बनकर गिरने लगे। जबकि झील में और बाहर ज़मीनों को अपने जबड़े में दबोचने वाले एनाकोंडा, मगरमच्छ, घड़ियाल और कोबरा भयहीन विचरण ही नहीं कर रहे थे बल्कि भवनों का निर्माण करते हुए यह बता रहे थे कि ऊपर जुगाड़ हो और नीचे रुपये की थैली खोलकर कुछ भी करो। मीडिया में अधिकतर दलाल हैं वह खुद अफसरों के बीच की कड़ी बनकर सौदा कर देंगे। खैर ऐसा चलने भी लगा। एक कथित पत्रकार जिसकी ज़मीन भी झील में है। उसने राजनीतिज्ञों, प्रशासन और भू-माफिया के बीच ऐसा तानाबाना बुना कि कार्रवाई में लगे अफसरों की रफ्तार साइकिल सरीखी 15 किलोमीटर प्रतिदिन के हिसाब से हो गई। ऐसा नहीं है कि उसने लोगों से फ्री काम कराया। उसने अपनी ज़मीन बचाते हुए अफसरों को लाल -काल कर दिया। अब आम जनता या जागरूक मीडिया यह जानना चाहे कि कितना राजस्व वसूल हुआ जिसके भरोसे जौनपुर विकास प्राधिकरण की बिल्डिंग बननी है तो प्रशासन इसका जवाब क्यों देगा? वाकई जवाब नहीं मिल रहा। त्योहार व वीआईपी के बहाने बताए जा रहे।
इसके पीछे भी बड़े पापड़ बेले गए। दिलचस्प ये है कि भू-माफ़िया में हर प्रमुख दल के कथित नेता,कार्यकर्ता शामिल हैं। लेकिन दबाव के साथ काम तब बनता है जब पैसे की गठरी के साथ सत्ताधारी दल के मजबूत लोग कमान संभालें। हुआ भी यही, प्रशासन की सख्ती व तेजी पर ब्रेक लगाने में पूरे दो महीने लगे। इसमें बड़ी व छोटी पंचायत के माननीय और एक वजीर भी लग गया तब बात बनी। इधर कथित पत्रकार ने अपने जातीय अधिकारी को शीशे में उतार लिया। कई तहसीलों के छुटभैये नेता अपने आका के जरिये अफसरों की धार कुंद कर दिए। रही बात जिले के आला हाकिम की तो वह लाख ईमानदार रहें जब मातहत पैसा लेता है तो देने वालों को पता रहता है कि इसमें से हिस्सा ऊपर तक जाएगा। क्रमशः
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