जौनपुर। जहाँ एक ओर वर्तमान सरकार का रवैया, वित्तविहीन शिक्षक साथियों के प्रति उपेक्षापूर्ण एवं गैर-जिम्मेदारी भरा है। वहीं दूसरी ओर सभी शिक्षक संगठनों और उनके नेताओं द्वारा भी इन शिक्षक साथियों को केवल वोट बैंक के रूप में देखा और इस्तेमाल किया जाता रहा है, परिणामतः ये वित्तविहीन शिक्षक साथी आज भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं। इसके लिए सरकारों से ज्यादा शिक्षक संगठन और उसके स्वयंभू ठेकेदार जिम्मेदार हैं क्योंकि अगर इन नेताओं ने ईमानदारी से वित्तविहीन शिक्षक साथियों की लड़ाई को लड़ा होता तो आज वे भी सम्मान जनक मानदेय और सेवा नियमावली के साथ हमारे बीच जीवन-यापन कर रहे होते।यह बातें कहते हुए माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं वाराणसी खंड शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार रमेश सिंह ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में इन वित्तविहीन शिक्षक साथियों के सहयोग से नये तेवर और जोश के साथ निर्णायक लड़ाई लड़े जाने के लिए सभी शिक्षक संगठनों और उनके नेताओं का आह्वान किया है।
उन्होंने कहा कि अभी तक इन साथियों को केवल छलने का काम ही शिक्षक संगठनों और उनके नेताओं द्वारा किया गया है। एक सर्वाधिक बुजुर्ग अध्यक्ष की घृणा इन साथियों के प्रति जग-जाहिर है जो अपनी सारी ऊर्जा इन्हें मतदाता बनने से रोकने में ही लगा-लगाकर जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं। एक दूसरे अध्यक्ष तो पिछले मूल्यांकन के दौरान ही मूल्यांकन केन्द्रों पर घूम-घूम कर 5 अंकों का मानदेय जो 15000/ माह से कम नहीं रहना था आरटीजीएस के माध्यम से दिलवाते हुए सेवा नियमावली भी बाँट चुके हैं और शिक्षा मंत्री एवं सरकार को धन्यवाद दे कर उनसे वाहवाही पा चुके हैं। एक महासभा के अध्यक्ष जी तो इतने क्रान्तिकारी निकले कि वित्तविहीन शिक्षक साथियों के लिए सरकार से लड़ते-लड़ते खुद सरकारी पार्टी का झंडा बुलंद करते हुए सदन में एक बार फिर पहुँचने का मंसूबा पाले हुए हैं। ऐसी स्थिति में वित्त विहीन शिक्षक साथियों को बहुत सोच समझ कर मतदान करने की आवश्यकता है। वोट उसे करें, जो आपके लिए संघर्ष करें।
0 Comments